ज़िंदगी अपनी आप मेरे नाम लिख दीजिए

ज़िंदगी अपनी आप मेरे नाम लिख दीजिए
अपने साथ ही मेरा तो अंजाम लिख दीजिए

खुदा भी रो पड़े हुमारी जुदाई की सोच कर
मोहब्बत का कुछ ऐसा पैगाम लिख दीजिए

इतनी शिद्दत से चाहा है की दुनिया देखेगी
दो रूहो के मिलने का कलाम लिख दीजिए

सारी कायानत दुआएँ करती है हमारे खातिर
उनका शुक्रिया कीजिए उनको सलाम लिख दीजिए

सब्र का इंतेहाँ एक दिन तो ख़त्म होगा बेशक़
हमे मिलना ही है ये बात सारे आम लिख दीजिए

चन्द दीनो की जुदाई बदलेगी क्या ईमा हमारा
खुदा एक दिन ज़रूर देगा हमे इनाम लिख दीजिए

जब से देखा है चेहरा तेरा

जब से देखा है चेहरा तेरा , मेरी आँखों मे नूर रहता है.
मेरी ख्वाब-ए-गिरा मे अब तो,बस तेरा ही सुरूर रहता है.

हवाओं में बिखरी खुश्बू तेरी,छु कर जाती है मेरी रूह
एहसास भी नही होता की,तू मुझसे इतनी दूर रहता है.

दिल बेताब रहता है मेरा, दिल का मुक़द्दर ऐसा ही सही.
तुझे पा तो लिया है मैने , मुझे इस बात का गुरूर रहता है.

तुम आए तो दुनिया ये जन्नत जन्नत सी हुई है मेरी खातिर
हाथ जब थामे है तो ,एहसास-ए-शफ़्तागिए हूर रहता है.

किस तवक्को पे किसी और को देखु, तुमसा कोई नही है.
दुआओं मे भी मेरे अब तो बस तेरा रुख़-ए-पुर्नूर रहता है.

ज़िंदगी जीने का सालीक़ा भी बदला बदला सा है मेरा तो
तेरी सादगी का,तेरी बंदगी का,मुझमे अब सऊर रहता है.

सिर्फ़ तुम ही हो

जब उजाले थे मेरे साथ
तो था सारा जहाँ
अंधेरो मे परछाईयाँ
भी साथ ना थी

भटक रहा था दर-ब-दर
एक खलिश के साथ

रूह बिखरी सी थी
अबला पावं थे
कही दूर तलक
नई सुबह की आस ना थी

अपनी किस्मत पे रंज था
हाथो की लकीरो पे ग़म

ईमान खुदा पे तो था
पर वो आखरी साँसे गीन रहा था

तभी उम्मीद की
एक नई सहर जागी
काटने अंधेरो के ग्रहण
धूप की एक नई किरण जागी

खुदा का नूर बन के
तुम आए
मिल गये मुझको ज़िंदगी के
नये साए

मेरे हौसलो को नई जान मिली
ख्वाबो को मेरे परवान मिली

कैसे बताउ तुम्हे
की तुम क्या हो
तुम इन्सा तो नही
ना कोई फरिश्ता हो

अज़ान-ए-इबादत हो शायद
एक पाक आयात हो शायद
और हो मुक़द्दर-ए-जावेद

तुम मेरे लिए क्या हो
तुम भला क्या जानो
मैं भी जानता नही
बस दिल मे उतार रखा है

भला जानू भी कैसे
जिस तरह खुदा को
कोई जान ना पाया है
सिर्फ़ दिल मे बसाए रखता है

तुम भी तो
उसकी भेजी हुई इनायत हो
मेरी सुबह हो
मेरे ख्वाब हो
मेरी ज़िंदगी हो
मेरी औकात हो

हा तुम सिर्फ़ तुम
तुम ही तुम..सिर्फ़ तुम ही हो

तेरी यादों की सुनहरी धूप

तेरी यादों की सुनहरी धुप
जो एक जश्न है मेरी ज़िन्दगी का
जो गीली रेत पर छोड़ के अपने निशां
लिखती जाती है कोई गीत ख़ुशी का

वो तेरे साथ बिताये हर लम्हें
दिल की धड़कन में कोई साज़ छेड़ जाता है
आज भी देती हैं जब दस्तक तुम्हारी यादें
तेरा अक्स नगमों में बदल जाता है

मैं नही जानता
की ये यादें ना होती तो क्या होता
शायद मेरी ज़िन्दगी में एक खला होता
मगर मैं ये जानता हु
ना कोई खुशनुमा सरगम का फलसफा होता
ना ज़िन्दगी जीने का मायना होता

हाँ,
ये यादें,एक जश्न हैं मेरी ज़िन्दगी का
जो लिखती जाती हैं कोई गीत ख़ुशी का




नोट: मेरी ये कविता आप किसी दिन भी Mastii TV पर रात 9 बजे "The Golden Era With Annu Kapoor" शो में अभिनेता अन्नू कपूर की आवाज़ में सुन सकते है


https://vimeo.com/29774233

छुओ कभी तो मुझे मन की उंगलियो से

छुओ कभी तो मुझे मन की उंगलियो से
खुद को पाओगे हर सांसो पे तितलियो से

मैं दरख़्त हू बंजर का कभी हरा ना हुआ
हज़ारो बार जला हू मैं तमाम बिजलियो से

तुम मिले हो तो ऐसा लगाने लगा है मुझको
धड़कने होने लगी है रवाँ पिछे पसलियो से

तमाम उम्र मुझे लूटा है राहगीरो ने कुछ ऐसे
लकीरें मिट सी गई है जैसे मेरी हथेलियो से

बड़ी उम्मीद है तुझसे इस आखरी पड़ाव पर
की आबाद हो घर मेरा भी अटखेलिओं से

रूह को मेरी सकूँ दो ज़रा हमकदम बन कर
मैं थक गया हू बहुत ज़माने की रंगरेलियो से

चंद अल्फाज़ो मे भला कैसे समेटू मैं बता

चंद अल्फाज़ो मे भला कैसे समेटू मैं बता
मेरा इश्क़ कोई ग़ज़ल नही एक पाक सिपारा है

नही लिपटे है इसमे चाँद सितारे फिर भी
यही मेरी इबादत यही जन्नत का नज़ारा है

दर्द भी,जुदाई भी और दुनिया के हैं मरहले
फिर भी हर आयात को इसकी दिल मे उतारा है

कितनी दुआए की है खुदा से,रातो को जाग कर
कैसे बताए कितनी सिद्दत से इसको सँवारा है

वो लोग और होंगे जो हारे है मुहब्बत मे
मैने तो गम उठा के इसे और निखारा है

पा कर के साथ उसका “जावेद” ने ये जाना है
ज़िंदगी उसके साथ हो तो फिर पीराने बहाराँ है


*पीराने बहाराँ= बहारलाने वाला

"औरत"

तुझे पाक सिपरा कहूँ, या कहूँ मैं वज़ू का पानी.
तेरा मकाम सब से आला, है आला तेरी कहानी


कभी माँ बन के तूने,मुझे आँचल मे है छुपाया
कभी रो पड़ी थी तुम भी,किया मैने जब नादानी


मेरे इफलास के दिन मे,तूने मेरा हौसलो को सिंचा
तू बहन बन के देती रही, नई रोशनियो की रवानी


मैं जब भी हुआ तन्हा सा, तूने मुझे गले लगाकर
माशूक बन के मेरी, किया तूने ज़िंदगी को रूमानी


बिखेरी आँगन मे खुशिया और बुजुरगी का सहारा
आई बन के मेरी बेटी, जैसे खुदा की हो मेहरबानी


ये औरत तू मेरे लिए क्या है मैं कैसे बयां करूँ
तू उन आयतो सी हैं,जो खुदा से जोड़े हैं रिश्ता रूहानी

*जावेद अहमद




मैं "जावेद" जननी हूँ.


मैं कृत्य संकल्प हू,
अपनी माँ की उस
छ्टपटाहत को
वापस करने के लिए.
जो -
गर्भ से बाहर आने तक
उसने झेली है.
ताकि वो -
सुख के अपार क्षणों मे,
अपनी आँखो से आसुओ के दो बूँद
मोती मे ढाल कर गर्व से -
जग को दे सके
और कह सके -
मैं “जावेद” जननी हूँ.

*जावेद अहमद