क्यों एक फिल्म का बार बार बदलना पड़ रहा था क्लाइमेक्स

साउथ की फिल्मों के एक मशहूर डायरेक्टर हुआ करते थे,नाम था, के. बालाचंदर,
राज कपूर के बड़े फैन थे, 1981 मे बालाचंदर ने एक फिल्म बनाई, नाम रखा, एक दूजे के लिए....
बालाचंदर की तमन्ना थी की राज कपूर उनकी फिल्म सबसे पहले देखें, और अपनी राय दें,
राज कपूर आए फिल्म देखने, फिल्म देखि उन्हें बहुत पसंद आई, बालाचंदर को आशीर्वाद दिया की तुम्हारी फिल्म कामयाब हो, लेकिन जब राज कपूर जाने लगे तो बहुत संकोच के बाद बालाचंदर से कहा की अगर तुम फिल्म का क्लाइमेक्स बादल दो और हीरो हीरोइन को ज़िंदा रखो, फिल्म की हैप्पी एंडिंग हो तो फिल्म और भी मज़ेदार हो जाएगी।

राज कपूर की बात का वहाँ मौजूद हर किसी ने समर्थन किया, लेकिन बालाचंदर इस बात के लिए राज़ी नहीं हुये, उन्हें लगा की फिल्म का क्लाइमेक्स ही दर्शको के दिल को छु जाएगा। फिल्म रिलीज हुयी, बालाचंदर की सोच सही साबित हुयी फिल्म के क्लाइमेक्स ने सच मे दर्शको के दिलों को छु लिया।

फिल्म के रिलीज हुये अभी एक हफ्ते हुये थे की, पूरे देश से एक के बाद एक जगह से खबर आने लगी की प्रेमी प्रेमिका फिल्म के क्लाइमेस की तरह आत्महत्या करने लगे है, हँगामा खड़ा होगा.... सरकार समाजसेवी संस्थाएं फिल्म का विरोध करने लगी, और हालत ये हुये की बालाचंदर पर दबाओ बनाया जाने लगा की फिल्म का दूसरा कलाइमेक्स शूट कर के फिर से जोड़िए वर्ण फिल्म बैन कर दी जाएगी।

बालाचंदर ने आखिरकार दूसरा क्लाइमेक्स शूट किया, और नए क्लाइमेक्स के साथ फिल्म दिखाई जाने लगी,
लेकिन एक नया पंगा हो गया, नया क्लाइमेक्स दर्शको ने नकार दिया, अब फिर एक हफते बाद ओरिजनल एंड जोड़ चलाई गयी,
और फिल्म ने कामयाबी का एक नया रिकर्ड कायम किया.

क्यों गुरुदत्त चाहते थे की फिल्म “चौंधवी का चाँद” का टाइटल सॉन्ग रफी दुबारा रिकार्ड करें ?

गुरु दत्त ने म्यूजिक डाइरेक्टर रवि को एक फिल्म मे अपने साथ काम करने का मौका दिया, फिल्म का नाम था, “चौदहवी का चाँद”... वैसे तो रवि उन दिनों हिट फिल्में दे रहे थे , लेकिन गुरुदत के खेमे मे शामिल होना बड़ी बात माना जाता था।
जब फिल्म का टाइटल सॉन्ग रिकार्ड होना था उन दिनों मोहम्मद रफी की व्यस्तता कुछ ज़्यादा थी, लेकिन रवि के लिए वक़्त निकाल कर वो आ गए।
रिकार्डिंग शुरू हुयी, रफी की आदत थी की अगर गाने के बोल उनके दिल को छु गए तो वो अपनी रौ मे बह जाया करते थे।
इस गाने की रिकार्डिंग मे भी ऐसा हुआ, रूमानियत भरी स्लो म्यूजिक, मध्यम आवाज़ मे रफी गाये जा रहे है, लेकिन जैसे ही एक लाइन आती है, मस्ती है जिसमें प्यार की तुम, वो शराब हो.... रफी बह गए अपने रौ मे...तेज़ आवाज़ मे और खींच के गा दिया।
रिकार्डिंग खत्म हुयी, सबने तारीफ किया,लेकिन गुरु दत्त को पसंद नहीं आया, बोले फिर से रिकार्डिंग करो, अब दुबारा रिकार्डिंग मुमकिन नहीं थी क्यूकी रफी को कहीं और जाना था, तय हुआ की कल आ कर रिकार्डिंग करेंगे, लेकिन बाद में हालात कुछ ऐसे बने कि दोबारा रिकॉर्डिंग नहीं हो सकी और गाने को यूँ ही रहने दिया गया। लेकिन आप जब भी गौर से इस गाने को सुनेंगे तो आपको यहसास होगा की गुरुदत्त शायद अपनी जगह सही थे

सी०रामचंद्र से किसने कहा की चितलकर जैसी धुन बना कर लाओ,तो उन्होने क्या किया?

सी०रामचंद्र का एक नाम हुआ करता था, चितलकर....बनने आये थे हीरो, लेकिन किस्मत में संगीतकार बनना लिखा था, सी०रामचंद्र चितलकर के नाम से भी काम किया करते थे,लेकिन ये बात हर किसी को पता नहीं थी,एक बार
डाइरेक्टर और एक्टर गजानंद जागीरदार, एक फिल्म बना रहे थे..... सी०रामचंद्र को बुलाया,कई धुनें सुनीं...लेकिन खुश नहीं हुए….जगीरदार ने कहाँ, “तुम्हारी धुने अच्छी तो हैं, मगर मज़ा नहीं आया, वो एक नया संगीतकार आया है, चितलकर....बड़ी प्रशंसा हो रही है आजकल उसकी है.... कुछ उसकी तरह का बढ़िया और ताजा सुनाओ”
सी०रामचंद्र ने अगले दिन कुछ और धुनें सुनायीं...जागीरदार असंतुष्ट रहे, फिर वही बोला, “यह चितलकर जैसी धुनें नहीं हैं”
सी०रामचंद्र ने तीन दिन का मोहलत मांगा, तीन दिन बाद लौटे....उन्होंने पहले दिन वाली धुनें पुनः सुनायीं और बताया कि ये चितलकर जैसी हैं....मानो मोगांबो खुश हुआ... वाह वाह क्या धुने है...बिलकुल चितलकर जैसी...बात बन गयी।
सी.रामचंद्र बड़े ताज्जुब मे, धुने वही पहली बाली, सिर्फ चीतलकर जैसा बोलने से धुने बढ़िया हो गयी? सी.रामचंद्र को रहा नहीं गया, खोल दिया राज़, “चीतलकर कोई और नहीं, मैं ही हूँ”... जागीरदार बहुत शर्मिंदा हुए।
खैर, इसके बाद वो फिल्म भी नहीं बन सकी किसी वजह से, लेकिन जगीरदार और सी.रामचंद्र दोनों पक्के दोस्त ज़रूर बन गए।

क्या रिश्ता था मीना कुमारी का गुरुदेव रविन्द्र नाथ टेगोर के साथ?

रविन्द्र नाथ टेगोर , एक ऐसी शख्सियत जिसने दो देशो का राष्ट्रीय गीत लिखा "जनगण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता " और बांग्ला देश का राष्ट्रगीत " एकला चलो रे "

और मीना कुमारी को ये देश ट्रेजडी क्वीन के नाम से जानता है, लेकिन मीना कुमारी में इस देश की सभ्यता, संस्कृति और तीन मुख्या धर्मो का समावेश था. मीना कुमारी की नानी का नाम था, सुंदरी देवी ठाकुर...सुंदरी देवी का विवाह हुआ था, गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के छोटे भाई Jyotirindranath से.... Jyotirindranath की मृत्यु के बाद सुंदरी देवी विधवा हुयी तो प्रोग्रेसिव ख्यालात के बावजूद टैगोर परिवार ने सुंदरी देवी ठाकुर को विधवा होने के नाते घर से बेदखल कर दिया....मज़बूरी , संघर्ष और किस्मत सुंदरी देवी ठाकुर को लेकर आ गयी लखनऊ....जहाँ नर्स की नौकरी करनी पड़ी.

यही उर्दू जर्नलिस्ट प्यारे लाल शाकिर को पता चला की सुंदरी देवी ठाकुर गुरु रविंद्रनाथ टैगोर के परिवार की हैं तो प्यारे लाल सुंदरी देवी का इंटरव्यू लेने पहुचे....प्यारे लाल शाकिर क्रिश्चियन थे...इंटरव्यू के बाद दोनों के बीच,धीरे धीरे अंतरंगता बढती चली गयी...प्रेम का अंकुर फूट पड़ा......दोनों ने शादी कर लिया...पयार लाल और सुंदरी देवी के संगम से जन्म हुआ दो पुत्रों और चार पुत्रियों का.

इनमे से एक पुत्री थी प्रभावती, हालत प्रभावती को बम्बई ले आया....जहाँ प्रभावती एक थियेटर कंपनी में काम करने लगी...यही प्रभावती की मुलाक़ात हुयी एक हारमोनियम प्लेयर से, नाम था अली बक्श.....प्यार हुआ...शादी हो गयी....निकाह के बाद प्रभावती का नाम पड़ा, इकबाल बानो... अली बक्श और इक़बाल बनो की तीन औलादें हुई....मधु खुर्शीद और महज़बीन , महज़बीन जिसे हम मीना कुमारी के नाम से जानते हैं ..........................

मोहम्मद रफ़ी से जुड़ा एक दिल को छू लेने वाला किस्सा.

दिल एक मंदिर है..इंसान का दिल अगर एक मंदिर हो तो इंसान नेक,इमानदार और इंसानियत से लबरेज़ हो जाता है...ऐसे ही एक शक्शियत थे मोहम्मद रफ़ी......मोहम्मद रफ़ी से जुड़ा एक दिल को छू लेने वाला किस्सा याद आ रहा है ..... मोहम्मद रफ़ी ने एक नई और महँगी कार खरीदी, एम्पाला... एम्पाला लैफ़्टहैंड ड्राइव होती थी .... रफ़ी के ड्राईवर सुलतान लैफ़्टहैंड ड्राइव में कमज़ोर था ....जिस वजह से अक्सर दिक्कत आती थी..सबने कहा की ऐसे ड्राइवर को नौकरी पर रख लीजिये, जो लैफ़्टहैंड ड्राइव में माहिर हो...

दो दिनों में ही रफ़ी को एक ड्राईवर मिल भी गया...लेकिन रफ़ी इस बात से परेशान हो गए की सुल्तान को नौकरी से निकाल दिया तो वो बेरोजगार हो जायेगा...उसके बीवी बच्चों का खर्च कैसे चलेगा....?

रफ़ी को दोस्तों ने समझाया की आप बिना वजह इतना परेशान हो रहे हैं... सुल्तान को कहीं और नौकरी मिल जाएगी...पर रफ़ी ने किसी की ना सुनी..... दो चार दिन कशमकश में रहने के बाद रफ़ी ने सुल्तान के लिए ७० हज़ार में एक नई टैक्सी खरीदी....उसके नाम से परमिट बनवाई....टैक्सी उसे गिफ्ट कर दिया ताकी वो टैक्सी चला कर अपने परिवार का गुज़ारा सके. ..................

एक गीत की कहानी.

मदन मोहन ने....मदन मोहन एक hunting romantic situation पर गीत कम्पोज किया था, फिल्म थी "वो कौन थी". बड़ी मेहनत से गीत बनाया था, लेकिन जब फिल्म के डाईरेक्टर राज खोसला को सुनाया, तो राज खोसला को कम्पोजीशन पसंद नहीं आई, मदन मोहन बहुत दुखी हो गए...उन्हें confident था की उनका ये कम्पोजीशन memorable song साबित होगा.

मदन मोहन ने अपना दुःख मनोज कुमार से शेयर किया, मनोज कुमार ने जब कम्पोजीशन सुना तो उन्हें लगा की ये तो कमाल की कम्पोजीशन बनी है, मनोज कुमार ने मदन मोहन को वादा किया की आप की कम्पोजीशन जाया नहीं जाएगी

अगली म्यूजिक सिटिंग पर मनोज कुमार अचानक पहुच गए, राज खोसला भी मौजूद थे, बातों बातों में मनोज कुमार ने मदन मोहन से कहा की ज़रा hunting situation वाली कम्पोजीशन सुनाईये. मदन मोहन शुरू हो गए.

जैसे ही गाना ख़त्म हुआ मनोज कुमार वाह वाह करने लगे...राज खोसला को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने उस कम्पोजीशन को अप्रूव कर दिया...जानते है वो गीत कौन सा था?....वो गीत था "लग जा गले की फिर ये हंसी रात हो न हो".............